अमर चित्र कथा हिन्दी >> गुरु हरगोबिन्द गुरु हरगोबिन्दअनन्त पई
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गुरु हरगोबिन्द
गुरू हरगोबिंद (1595-1644) सिखों के छठे गुरू थे। वे बड़े तेजस्वी थे। उन्होंने ही सिखों की शांतिप्रिय जाति को वीर सैनिक बनाया। गुरू हरगोबिंद दो तलवारें धारण किया करते थे- एक उनकी धार्मिक सत्ता की प्रतीक और दूसरी सांसारिक सत्ता की। उन्हें 11 वर्ष की आयु में जब गुरू बनाया गया तब सिख जाति पर संकट के बादल छाये हुए थे। उनके अधीन सिख घुड़सवार और शूरवीर सैनिक बने। जहाँगीर ने उन्हें एक वर्ष से अधिक समय तक ग्वालियर के दुर्ग में बंदी बना कर रखा। उन्होंने चार बार मुगलों से युद्ध किया और चारों बार मुगलों के छक्के छुड़ा दिये। गुरू हरगोबिंद जितने शूरबीर थे, उनकी प्रवृत्ति उतनी ही धार्मिक भी थी। अपने अनुयायिओं को उन्होंने सही रास्ता दिखाया। अपना जीवन उन्होंने समाज की सेवा में तथा समाज को सामंती अनाचार और राजनीतिक पीड़न से बचाने में उत्सर्ग किया। उनका जीवन हमेशा हमें प्रेरणा देता रहेगा।
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